Tuesday, October 18, 2011

आडवाणी जी चेतना की जरुरत देश को है या भाजपा को
भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी एक बार फिर अपना रथ लेकर निकल पड़े है अपनी लाडली बिटिया को लेकर. यात्रा का उद्देश्य बताया जा रहा है देश में फैले भ्रष्टाचार के प्रति जन चेतना जागृत करना. और आगे आने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जनता को ये सन्देश देना की सिर्फ देश में भाजपा ही ऐसी पार्टी है जो देश को साफ़ सुथरी सरकार दे सकती है. बावजूद इसके भले ही इसमें बंगारू लक्ष्मण,रेड्डी बंधू,दिलीप सिंह जूदेव , फगन सिंह कुलस्ते, उत्तराखंड के पूर्व मुख्य मंत्री निशंक और कर्नाटक केपूर्व  मुख्य मंत्री यदुरप्पा जैसे नेता हो. जिनके चेहरे पर भ्रष्टाचार की कालिख पुत चुकी हो और जिन्हें भाजपा अभी भी अपने कंधे पर ढो रही है.
        लाल कृष्ण आडवाणी की भ्रष्टाचार के खिलाफ ये जनचेतना यात्रा कितनी भ्रष्टाचार के खिलाफ है और इसमें कितना पुट आडवाणी जी खुद अगले चुनाव में खुद अपने आप को प्रधान मंत्री के रूप में बेहतर विकल्प बनने की चेष्टा का है  इसके लिए सिर्फ एक ही उदहारण ही काफी है आडवाणी जी ने यात्रा शुरू करने से पहले झारखंड के रांची शहर में झारखण्ड के पूर्व मुख्य मंत्री शिब्बू सोरेन से मुलाकात की. देश की. जनता को अच्छी तरह याद होगा की शिब्बू सोरेन कौन है और कितने इमानदार है? आडवाणी जी भ्रष्टाचार के खिलाफ जनचेतना जगाने निकले है. सही मायनो में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनचेतना जगाने का काम ढाई माह पूर्व अन्ना हजारे पूरे देश में कर चुके है. अभी तो सही मायनो में अगर किसी की चेतना जगाने की जरुरत है तो वो सिर्फ भाजपा पार्टी को है. जिसमे हर कुछ माह बाद एक न एक नेता पर भ्रष्टाचार के मामले में कालिख पुतती नजर आ रही है.
    सही तो यह होता की आडवाणी जी पहले अपनी पार्टी में उन लोगो की छंटाई करते जिनके दामन दागदार है. फिर  जनता के बीच ताल ठोककर जाते और कहते कि अब फर्क कीजिये कांग्रेस और भाजपा में. पूरा देश उसी तरह आडवाणी जी के साथ उठ खड़ा होता जैसे अन्ना के साथ जन लोक पाल बिल के मामले में खड़ा हो गया था. पर अफ़सोस, छटाई कि बार तो दूर यदुरप्पा के भ्रष्टाचार को लेकर जेल जाने के मामले में आडवाणी जी का मुंह तक नहीं खुल पा रहा है. कांग्रेस कि लकीर छोटी कर भाजपा अपनी लकीर बड़ी बताने के चक्कर में अपना चेहरा आईने में नहीं देख पा रही है. भाजपा के इस दोहरेपन और दिखाऊ राजनीती को देश कि जनता अब अच्छी तरह देख  भी रही है और समझ भी रही है.
  आडवाणी जी आप को महात्मा गाँधी जी का वो प्रसंग शायद याद होगा जिसमे एक महिला अपने बच्चे कि ये शिकायत लेकर पहुची थी कि बापू ये बच्चा गुड़ बहुत खाता है इसको मना कीजिये. और गाँधी जी ने उस महिला तीन दिन बुलाया और अंतिम दिन माँ के सामने बच्चे को इतना कहा कि बच्चा ज्यादा गुड़ खाना अच्छी बात नहीं है गुड खाना छोड़ दो. महिला को बड़ा ताज्जुब हुआ कि इतनी सी बात कहने के  लिए गाँधी जी ने तीन दिन लगा दिए और उसने शिकायती लहजे में बापू से पुछा कि आप यही बात पहले दिन भी कह सकते थे. तो गांधी जी का जवाब था बहन तीन दिन पहले तक मै भी बहुत गुड़ खाता था और अब मैंने खाना छोड़ दिया है.
       पाठको बात बहुत साधारण सी है मगर इसका अर्थ बहुत गहरा है आडवाणी जी अपना अपना रथ लेकर कांग्रेस को कोसने और जनता को  चेताने निकल तो गए है मगर उन्हें अपनी पार्टी का भ्रष्ट चेहरा नजर क्यों नहीं आता ?